या खुदा ये कैसा कर्म है
हम पर तेरी महर हुई
बीत गया जो अंधकार था
अब नई मेरी सहर हुई
ये कैसी बदली काली थी
दीखता था वो न दिखा
बिछड़ गये जो अपने थे
संग साया तक भी न रुका
नैनो से मोती न थमते
जुबां हलक में जमती थी
कान तरसते थे सुनने को
जो बाहों में थमती थी
तेरी रहमत के आगे अब
सजदा सजदा और सजदा
कब क्या होगा कैसे होगा
जाने तू बस तू है खुदा
या खुदा ये कैसा कर्म है
हम पर तेरी महर हुई
बीत गया जो अंधकार था
अब नई मेरी सहर हुई
5 टिप्पणियां:
Bahut khooob.........Nice one
उसकी कृपा की आशा में...
नई सहर...की आश जगी।
सुन्दर गीत...
सादर बधाई...
ati sundar.
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