रविवार, 4 दिसंबर 2011

बेटी बिदा होती बाबू

अपने आंसुओं पर रखो काबू
आज बेटी बिदा होती बाबू
बचपन में खेली जिस अंगना
आज वो भी चला मेरे संग ना
कैसे पिया का चल गया जादू

छोड़ कर सब सखियाँ सहेली
चिड़िया सी चहकती थी खेली
कर सूना तेरे घर का कोना
मै चली पर तू यादें न खोना
बेटी परछाईं कहती सदा तू

मैया अब तू किसे डांटेगी
किसके बालों में कंघी फांसेगी
खनखनाती खामोश रसोई
कोई तंग न करेगा तू सोई
कैसे अकेली सम्भालेगी घर तू 


भाई छोड़ चली तुझे बहना
तू माँ बापू का एक ही गहना
झगड़े जो हुए सब भूल जाना
पर राखी पर बहिना बुलाना   
देख बचपन छोड़ेगा अब तू

मुझे कर दिया सबने पराया
जब से पिया को मुझसे जुडाया
क्या बेटी का रिश्ता हूँ खोई
अब कुछ करूं, न रोके कोई
यही विधि का विधान बता तू

आज बेटी बिदा होती बाबू

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच में बड़ी कठिन घड़ी होती है यह।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आज बेटी बिदा होती बाबू
बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह.....क्या शब्द चयन है .......बहुत खूब ...आँखे भीग आई