शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

ना आवेगा

नया सवेरा
नई आशा
पर जीवन की परिभाषा
ना बदली है ना बदलेगी

खिलें सभी
मिलें तभी
एक स्वप्न जैसी यह आशा
ना पूरी हुई ना होगी

नीचा ऊँचें
ऊँचा खींचे
दिखे बराबर की टोली
ना दिखी है ना दिखेगी

एक विश्वास
अपने ऊपर
दूजे को ना सिद्ध करें
ना जमा है ना जमेगा

जीवन मृत्यु
मृत जीवन
समझ में सबको आवे
ना आया है ना आवेगा   

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

छदम आहट

एक  सफर पर निकला था
एकांकी मन सम्भला था
तभी  तुम्हारी छदम आहट
मुझको मुझसे हिला गई

मंजिल न थी दूर कभी
बस कुछ कदम दूर थमी
पाने को था कदम बढाया
भटका फूल खिला गई

निश्चय अपना लक्ष्य था
पाना ही एक सत्य था
पर तुम एक ठोकर बनकर
लहू में पाँव सना गई

पूजा तुमको देवों संग
खुशियाँ बाँट हुए नंग
पर तुम जानकर जाते हुए
क्यूँ दुखती रग ही दबा गई

माँगा न था पूजा था
न तेरे सा कोई दूजा था
राजा थे अपनी चाह्त के
पर तुम भिखारी बना गई

चलो अब न कोई सपना है
न तुम सा कोई अपना है
एक बार फिर कमर कसी है
मंजिल को जो तुम भटका गई 

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

नई किरण की दस्तक

आज सुबह जब आँख खुली
एक नई  किरण ने दस्तक दी

उसकी चमक में आँख मली
बीता हुआ था सब रीत गया
सपने जो हकीकत थे समझे
मन पल में ही सब जीत गया

अब बीते का अफ़सोस नही
मन में सपनों का बोझ नही
नई किरण संग नया सवेरा
जो चला गया वो ना था मेरा

अब उठ खड़ा हो मन मेरे
पोंछ लकीरें अब मस्तक की
नई राह अब देख दिखे तेरी
उस नई किरण ने दस्तक दी 

सोमवार, 9 जुलाई 2012

प्रेम में न जिए

कैसे तबाह करके मुझे तुम चले गये
एक झलक दिखला के दीवाना सा कर गये
आज़ाद था घूमता दिल की लगी से दूर
दिल को क्यों लगा कर दिल्लगी सी कर गए
जग में कोई जिये तो जीने उसे तुम दो
दिल को न वो जानता दीवाना न तुम कहो
मोहब्बत की उस गली से उसे वास्ता नही
हुस्न की झलक से क्यों मदहोश तुम करो
राजीव देख जग को अब कुछ इस तरह कहे
करुणा का रस जो पिये वो प्रेम में न जिए   

रविवार, 1 जुलाई 2012

बदल समय संग

बदलता समय बदलते लोग
न जो बदले कष्ट रहे भोग
आज जो अपने कलके सपने
दिल के वो सब बनेंगे रोग
सीढ़ी बनायेंगे सब चढ़ने को
चढ़ते ही तुझे भुलायेंगे लोग
दोष न उनका होगा प्यारे
समय  संग बदले सब लोग
तेरी करनी तुझे  ही  भरनी
आँख मूंद क्यूँ रहा था सोच
आज जो पाया क्यूँ पछताया
बदल समय संग जैसे लोग

मंगलवार, 26 जून 2012

भूल जायूं मुमकिन नहीं

तुमेह भूल जायूं ये मुमकिन नहीं है
हमे भूल जाओ  न इस पर यकीन है

वो तपती दोपहरी वो नीम की छाया
गुड्डे गुड़िया का ब्याह था रचाया
अपने खेल  में तुमेह ही था ब्याहा
आज खो गई मेरी गुड़िया कही है

यौवन की दहलीज पर चढ़ रहे थे
हाथ में हाथ थामे यूँ बढ़ रहे थे
संग देख कर यूँ नयन जल रहे थे
लगता था जैसे जन्नत यहीं है

तुम दूर हो मुझसे यह तो पता है
हो किसी और के मेरी क्या खता है
दिल ले गये संग में न मांगते हैं
पर ये क्यूँ कहते हो जीना यूँही है

खुदा से दुआ में ये अब मांगते हैं
ज़माने की खुशियाँ दामन भरा हो
गम का न कोई साया संग खड़ा हो
अश्कों वहाँ न जाना राजीव यहीं है


तुमेह भूल जायूं ये मुमकिन नहीं है
हमे भूल जाओ  न इस पर यकीन है


रविवार, 24 जून 2012

ज़ख्म

जिनसे हमे थी नफ़रत तुम्हारे वो मीत हुए
ज़ख्म जो दिये हैं तुमने हमारे वो गीत हुए

जब भी मिला है मौका ज़ख्मो को यूँ है छेडा
हर  रिस्ते ज़ख्म पर तुम  मुस्कान ही लिये

अपनी थी ये नादानी विश्वास तुम पर करके
नफ़रत भरी नजर की चाहत में यूँ जिये

एक वादा कर सको तो अहसान हो तुम्हारा
मोहबत अगर हो ऐसी न मोहबत उसे कहे

खुदा उनके गुनाह बक्शे मोहबत जो  यूँ करे
ऐसी मोहब्त राजीव  दुश्मन भी नही सहे