शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

दिल की अनसुनी

चिंगारी नफरत की भीतर लिये फिरते रहे  
रिश्ते खाक कर दोष रिश्तों पर मढ़ते रहे

तुम तो सदा तुम थे हम समझ ना सके
आइना समझा और अस्क हम ढूढ़ते रहे

संभल कर चले उम्रभर कहीं गिर न जाएँ
गिरे तो उठाने को तुम्हे खुदा समझते रहे

तुम संग थे फिर क्यों जुदाई का अहसास
दिल की अनसुनी कर दिमाग रगड़ते रहे

सुनी बस्ती का सूनापन महसूस ना किया
हम हममे तूम तुममे हम तुम ढूढ़ते रहे

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