भूल गया क्यूँ कल का सहा
पानी मे वो प्रतिबिम्ब था
प्रतिबिम्ब मुझसे कहा
जो तुझमे है वो उड़ेल दे
हर्फों के सबको खेल दे
तेरी वेदना या चेतना
उसमे हो तेरा लिखा सना
जो पाया मैंने संचय किया
लिखने बैठा जो था सहा
पर हाय रे यह क्या हुआ
फिर भूल गया कल का सहा
एक बार फिर एक राह दिखी
मरू मैं बैठा लिखने अपनी लिखी अंतर्मन मैंने फिर छुआ
बचा कूचा रचने हर्फ़ नया
मरू की शांति संग थी
मेरी वो भ्रान्ति तंग थी
मै लिखता जाता हर कण में
वो छुपता जाता हर क्षण मे
मैं पुनः जो बैठा लिखने को
पर हाय रे यह क्या हुआ
फिर भूल गया कल का सहा
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