कलम कवि की
कलम कवि की
शनिवार, 20 अगस्त 2011
यौवन तान
गदराया सा ये बदन
झील से गहरे नयन
सुंदर सुडोल यौवन
डोलता डोले युवामन
खींचता मुझे हर क्षण
तोड़ने को सारे वचन
फूल की पंखुरी से होठ
गेसुओं सी नागिन चोट
चाँद से चेहरे की वो ओट
तपती साँसों की वो लोट
सुनाएँ मुझे एक ही तान
आज तोड़ दे सारे वचन
1 टिप्पणी:
प्रवीण पाण्डेय
ने कहा…
श्रंगार सृजन।
20 अगस्त 2011 को 4:59 pm बजे
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
श्रंगार सृजन।
एक टिप्पणी भेजें