कलम कवि की
कलम कवि की
बुधवार, 28 जुलाई 2010
गोज
आया पाया पोतड़ा
गया कफ़न के संग
जीवन पूरा कर गया
कमाया खूब बे अंत
जो कमाया यहीं रहा
छूटा देह का बोझ
ना पोतड़ा जगह मिली
ना कफ़न में कोई गोज
1 टिप्पणी:
Anamikaghatak
ने कहा…
bahut sundar prastuti.....gahare bhav.........
darshnik vichardhara
31 जुलाई 2010 को 5:35 pm बजे
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1 टिप्पणी:
bahut sundar prastuti.....gahare bhav.........
darshnik vichardhara
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