जिस महफ़िल में भी हम गातें हैं
तुम उठ कर क्यों चले जाते हो
जिस महफ़िल में हम जाते नहीं
तुम ढूंढने क्यों वहाँ आते हो
दिल से मजबूर पर जुबां से दूर
पता सबको हैं फ़िर भी छुपाते हो
ये आँख मिचोली ये प्रेम की होली
खेल प्यार का हरपल खिलाते हो
दिल में कुछ और जुबां पर कुछ
दुनिया को तुम जो दिखाते हो
पर प्यार जो उतरा है चेहरे पर
उसे जहान से छुपा न पाते हो
तुम उठ कर क्यों चले जाते हो
जिस महफ़िल में हम जाते नहीं
तुम ढूंढने क्यों वहाँ आते हो
दिल से मजबूर पर जुबां से दूर
पता सबको हैं फ़िर भी छुपाते हो
ये आँख मिचोली ये प्रेम की होली
खेल प्यार का हरपल खिलाते हो
दिल में कुछ और जुबां पर कुछ
दुनिया को तुम जो दिखाते हो
पर प्यार जो उतरा है चेहरे पर
उसे जहान से छुपा न पाते हो
2 टिप्पणियां:
मन को भाया,
बहुत छुपाया,
किन्तु विवशता.
सम्मुख आया।
दिल में कुछ और जुबां पर कुछ
दुनिया को तुम जो दिखाते हो
पर प्यार जो उतरा है चेहरे पर
उसे जहान से छुपा न पाते हो ..
ये तो प्यार का कसूर है .. झलक आता है चेहरे पर ... वर्ना ...
अच्छी रचना है राजीव जी ...
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