वीरान से हो गई है, मेरी ज़िंदगी सारी
दुखों का ये मौसम, खुशियाँ इसमें हारी
हर दिन था एक ख़ुशी का
हर लम्हा नया सवेरा
क्यूँ जीवन मे दुखों ने
आकर के डाला डेरा
सावन मे क्यूँ लगे है, पतझड़ के जैसे डारी
बुलबुल से तुम चहकती
इस दिल की हर गली में
नज़र आती तेरी सूरत
बगिया की हर कली में
तुमसे बिछड़ के अब तो, जिंदगानी फिरती मारी
राजीव को ना पता था
कहाँ जान उसकी बस्ती
गुमनाम यूँ पड़ा था
बिन तेरे क्या थी हस्ती
तन्हाई मे तडपती, है ज़िंदगी बेचारी
दुखों का ये मौसम, खुशियाँ इसमें हारी
हर दिन था एक ख़ुशी का
हर लम्हा नया सवेरा
क्यूँ जीवन मे दुखों ने
आकर के डाला डेरा
सावन मे क्यूँ लगे है, पतझड़ के जैसे डारी
बुलबुल से तुम चहकती
इस दिल की हर गली में
नज़र आती तेरी सूरत
बगिया की हर कली में
तुमसे बिछड़ के अब तो, जिंदगानी फिरती मारी
राजीव को ना पता था
कहाँ जान उसकी बस्ती
गुमनाम यूँ पड़ा था
बिन तेरे क्या थी हस्ती
तन्हाई मे तडपती, है ज़िंदगी बेचारी
1 टिप्पणी:
दर्द् अकेलेपन का गहरा..
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