सोमवार, 12 नवंबर 2012

50वां साल

50वां था चल रहा आदत ए इश्क न गई
वो आई मदहोश कर सब बाँध ले गई
आँख तो तब खुली जब न मिली पतलून
वाकया अजीब था तुम समझ लो मज्मुम

बात सिर्फ पतलून की होती तो चल जाता
शाम वो जब आएँगी उतरी हुए की उतारेंगी
आग लगे तन को क्या सूझी बूढ़े मन को
बेठे बिठाये को बिठाया निगल तू गम को

इतनी सुंदर न थी जो खड़ा हो गया शरीर
अब सब देखेंगे तेरी बनी बिन पतलून तस्वीर
पर ये मन मान जाये तो समझ आएगा
वर्ना फिर देख हसीना राजीव भटक जाएगा

4 टिप्‍पणियां:

Manoj jain ने कहा…

कैसा विचित्र संयोग है इस सरल वक्ता का
ह्रदय है कवि का और कर्म अधिवक्ता का

कर्म में तो झूठ - सच सब करे है
किन्तु मन मतवाला इन सब से परे है

समय चक्र ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति ... दीपावली पर्व के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ....

Shah Nawaz ने कहा…

रौशनी और खुशियों के पर्व "दीपावली" की ढेरों मुबारकबाद!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह..दीवाली की शुभकामनायें..