50वां था चल रहा आदत ए इश्क न गई
वो आई मदहोश कर सब बाँध ले गई
आँख तो तब खुली जब न मिली पतलून
वाकया अजीब था तुम समझ लो मज्मुम
बात सिर्फ पतलून की होती तो चल जाता
शाम वो जब आएँगी उतरी हुए की उतारेंगी
आग लगे तन को क्या सूझी बूढ़े मन को
बेठे बिठाये को बिठाया निगल तू गम को
इतनी सुंदर न थी जो खड़ा हो गया शरीर
अब सब देखेंगे तेरी बनी बिन पतलून तस्वीर
पर ये मन मान जाये तो समझ आएगा
वर्ना फिर देख हसीना राजीव भटक जाएगा
वो आई मदहोश कर सब बाँध ले गई
आँख तो तब खुली जब न मिली पतलून
वाकया अजीब था तुम समझ लो मज्मुम
बात सिर्फ पतलून की होती तो चल जाता
शाम वो जब आएँगी उतरी हुए की उतारेंगी
आग लगे तन को क्या सूझी बूढ़े मन को
बेठे बिठाये को बिठाया निगल तू गम को
इतनी सुंदर न थी जो खड़ा हो गया शरीर
अब सब देखेंगे तेरी बनी बिन पतलून तस्वीर
पर ये मन मान जाये तो समझ आएगा
वर्ना फिर देख हसीना राजीव भटक जाएगा
4 टिप्पणियां:
कैसा विचित्र संयोग है इस सरल वक्ता का
ह्रदय है कवि का और कर्म अधिवक्ता का
कर्म में तो झूठ - सच सब करे है
किन्तु मन मतवाला इन सब से परे है
बढ़िया प्रस्तुति ... दीपावली पर्व के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ....
रौशनी और खुशियों के पर्व "दीपावली" की ढेरों मुबारकबाद!
वाह..दीवाली की शुभकामनायें..
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