शुक्रवार, 1 जून 2012

आज की कहानी

आज ये कहानी सुन लो, मेरी जुबानी सुन लो
नयनो को भर न लायें कसम ये हमारी तुम लो

कैसा रिश्ता कैसा नाता, भाग्य का इन्सान विधाता
देखो कैसे कर्म है उसके, छोटे छोटे धर्म है उसके
प्रेम से वो कोसों दूर, एक दूजे को रहा है घूर
उसकी छोटी सोच देखो, बढ़ते उसके खोट देखो
भाई को न भाई भाए, माँ बहिन भी संग न आये
मात पिता की कैसी पूजा, भाए उसको घर ही दूजा
कैसा समय का चक्र पलटा देवी घर की हो गई कुलटा
आज सावित्री ढूंढे न मिलती सीता की भी कमी खलती
राम खो गए बनवासों में इसा मोहम्मद न सांसो में
कैसी शिक्षा और परीक्षा भाई बनने की मिले है दिक्षा
परदेसी सर ताज धरा है देसी अपनी जेब भरा है
भ्रष्टाचारी गुण है अपना देश भी बेचें ये है सपना
राज करने की एक ही निति गद्दारी संग अपनी प्रीति
चाहे जो भी काम करा लो चाटुकारिता तुम अपनालो
क्ल्ल्दार का मोह बड़ा है चाहे लथपथ बाप पड़ा है
ऐसी है ये कहानी सुनलो बिकती भरी जवानी सुनलो

भगत बोस जो होते, गाँधी पटेल संग में रोते
हश्र अपना ये होना था, आज़ादी को क्यूँ रोना था
आज हम जहाँ में होते पोते पोती संग हम सोते
काहे रस्सी पर थे झूले, गोली खा जलाये चुलेहे
विदेशी अपने देश से भागे मार हमारे हम न जागे
काहे भूले वो दिन अपने पड़े थे उनके जूते चखने
हम गधे से आज खड़े हैं वो फिर हमारे घर पड़े हैं
अब के आये न निकलेंगे न गुरु से फूल मिलेंगे
परदेसी का नहीं भरोसा कब दे जाये प्यारा धोखा
पंछी उड़ किस डाल बैठे बहता पानी न है भरोसा
न्याय व्यवस्था चर चर करती, अर्थव्यस्था कभी भी मरती
डॉलर अब भी रूपये से भारी त्राहि त्राहि जनता सारी
नेता क्यूँ बंद देश हैं करते, अक्ल में ये क्यूँ न भरते
मर रहा है देश हमारा जिसका नेता है हत्यारा
संसद जाओ या न जाओ, खाओ चाहे जो तुम खाओ
हाथ जोड़ पाँव पकड़े, आओ अपना देश बचाओ
वरना कहानी बन जाओगे हर जुबान पर आओगे

गद्दारों की कहानी सुन लो, मेरी जुबानी सुन लो
नयनो को भर न लायें कसम ये हमारी तुम लो

2 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच में, आज की स्थिति देख कर आँख भर आती है..