आज का दिन मै कैसे भूलूं
जबकि मुझ संग तुम चले हो
आज का दिन मै कैसे भूलूं
जबकि मन संग मीत मिले हों
छाज सा जीवन छन रहा था
उसमे कुछ अंश तुम मिले हो
अनचाही अत्रप्त धरा पर
अधरों ने आकर पुष्प छुए हों
खो चूका था मायने जिनके
आकर तुम ने अर्थ दिए हों
बालक मन था भटका भटका
बाँहों ने तुम्हारी झूल दिए हों
आज का दिन मै कैसे भूलूं
जबकि मुझ संग तुम चले हो
जबकि मुझ संग तुम चले हो
आज का दिन मै कैसे भूलूं
जबकि मन संग मीत मिले हों
छाज सा जीवन छन रहा था
उसमे कुछ अंश तुम मिले हो
अनचाही अत्रप्त धरा पर
अधरों ने आकर पुष्प छुए हों
खो चूका था मायने जिनके
आकर तुम ने अर्थ दिए हों
बालक मन था भटका भटका
बाँहों ने तुम्हारी झूल दिए हों
आज का दिन मै कैसे भूलूं
जबकि मुझ संग तुम चले हो
1 टिप्पणी:
वाकिन ज़िंदगी के कुछ पलों को कुछ खास दिनों को कभी भुलाया ही नहीं जा सकता सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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