आओ एक दुसाहस करे
लकीर का फकीर न बन
ढले सूरज को कर नमन
आओ पहले ये साहस करें
जिसने जल जल पुरे दिन
रास्ता साफ़ कर दिखाया
हमने उसे तनिक न कहा
उसने अपना कर्तव्य निभाया
उसकी निश्चितता तो देखो
बिन कहे रोज वो आता है
स्वार्थ भाव में सुबह पुजता
सांझ अकेला रह जाता है
एक सत्य है यही धरा का
जो छाता है पाता है सदा
ढले हुए या जर्जर हो पड़े
समय आए जाता है सदा
आओ ढले को भी अपनाएं
अहसानों को ना हम भुलाएँ
ढलना एक दिन सबको है
उदय और अस्त सबको है
आओ एक बार प्रयास करें
ढले भी पूजें ना उपहास करें
सृष्टि को हो गर्व पाल हमे
ऐसा पुत्र होने का साहस करें
2 टिप्पणियां:
पहल हर उद्यम के लिये आवश्यक है।
आओ ढले को भी अपनाएं
अहसानों को ना हम भुलाएँ
ढलना एक दिन सबको है
उदय और अस्त सबको है
बहुत सुन्दर भाव..बहुत प्रेरक सुन्दर प्रस्तुति..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
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