गंगा नहाये पाप धुले, साबुन धोये मैल |
ऐसो कलंक ना पाइओ, ना छुटे कहूँ गैल ||
मन को भँवरा बना के काहे ढूंढे फूल|
खुशबु तेरे तन छुपे काहे फांके चूल ||
नारी को ना समझो तुम नारी है कितनी कमज़ोर |
नारी से ही नर जन्मता नर की शक्ति उसमे जोड़ ||
मूक रहो तो जग समझे कितना तुमको ज्ञान |
राजीव मुख खुलते ही खुले अज्ञानी को ज्ञान ||
धरती को तुम जितना खोदो जितना छेदों
कुछ ना कुछ ये देती है |
राजीव जाने का समय जब आये तो देखो
बाँहों में भर लेती है ||
किती मानव भूल करे जोहे मौत की बात
मौत तो वाके संग रहे रूप बदल कर ठाट |
रूप बदल कर ठाट कबहू झटक दबोचे तोकू
राजीव समझ यह सच अगर समझे तोकू ||
कैसा ये मोड़ आया
जिंदगी हो गई खड़ी
दूर होती जा रही
रिश्ते की हर लड़ी
छदम भेष धारण किये, जन्म हर पल हमे ललचाये |
कभी ये जीवन कभी ये रिश्ते जोडन को मचलाए||
राजीव देखे जग को जग कबहू अपना होई |
एक बार कर आँख बंद जग एक सपना होई ||
थुल थुल बदन को देख कर भ्रम ताक़त का होय
राजीव मांस की यह गाड़ी एक पल में माटी होय
ऐसो कलंक ना पाइओ, ना छुटे कहूँ गैल ||
मौत आ जाये तो मैं जिंदगी पाऊं |
मरने की चाहत मैं जिए चला जाऊं ||
मन को भँवरा बना के काहे ढूंढे फूल|
खुशबु तेरे तन छुपे काहे फांके चूल ||
मन की नाव डोली फिरे, छोर नज़र ना आये |
राजीव छोर भीतर छिपा काहे तू ढुढन जाये ||
नारी को ना समझो तुम नारी है कितनी कमज़ोर |
नारी से ही नर जन्मता नर की शक्ति उसमे जोड़ ||
दर्द का मर्म ना जाने कोई हर ज़ख्म से इसका रिश्ता है |
कभी हलक से कभी पलक से पल पल पल पल रिसता है ||
मूक रहो तो जग समझे कितना तुमको ज्ञान |
राजीव मुख खुलते ही खुले अज्ञानी को ज्ञान ||
मुस्कराहट तेरा क्या कहना |
स्वर्ग का एहसास तेरा बहना ||
धरती को तुम जितना खोदो जितना छेदों
कुछ ना कुछ ये देती है |
राजीव जाने का समय जब आये तो देखो
बाँहों में भर लेती है ||
सुई से तलवार तक क्यूँ कोई जान ना पाए |
शब्दों में है क्या छुपा जो घाव गंभीर बनाये||
किती मानव भूल करे जोहे मौत की बात
मौत तो वाके संग रहे रूप बदल कर ठाट |
रूप बदल कर ठाट कबहू झटक दबोचे तोकू
राजीव समझ यह सच अगर समझे तोकू ||
मेरी (बूंद) क्या बिसात जो सागर से मुकाबला करूँ |
पर सागर रखे ज्ञात मुझ बूंद से उसका अस्तित्व है ||
कैसा ये मोड़ आया
जिंदगी हो गई खड़ी
दूर होती जा रही
रिश्ते की हर लड़ी
मौत जिंदगी को तू कब तक यूँ ढोना चाहेगी
समय समय पर उसको छध्म बाग़ दिखाएगी
बेचारी जिंदगी तेरे चुंगल से कब छुट पायेगी
राजीव एक दिन ये स्वयं ही मौत बन जायगी
छदम भेष धारण किये, जन्म हर पल हमे ललचाये |
कभी ये जीवन कभी ये रिश्ते जोडन को मचलाए||
चक्षु घुमे चहुँ ओर देखे दुनिया सारी|
क्यूँ ना देखे तन जामे चक्षु उभारी||
राजीव देखे जग को जग कबहू अपना होई |
एक बार कर आँख बंद जग एक सपना होई ||
महक महक की सुनो कोई ज़ुबां नहीं होती
महक महकेगी कहाँ यह कभी नहीं कहती
थुल थुल बदन को देख कर भ्रम ताक़त का होय
राजीव मांस की यह गाड़ी एक पल में माटी होय
प्रेम तुमको कब कहे करो तुम उनका बखान
जो बखान करो प्रेम का वो हो व्यापार समान
4 टिप्पणियां:
wow ...
खूबसूरत दोहे , कविता की वास्तविक परिभाषा कहते शब्द बधाई
प्रवाहों के भिन्न भिन्न रूप।
एक टिप्पणी भेजें