कलम कवि की
कलम कवि की
शुक्रवार, 7 जनवरी 2011
चल झाड़ हाथ
शिथिल शरीर
उखड्ती साँस
उचाट सा मन
थकन अहसास
भारी से कदम
बोझिल आत्मा
थकी सी पलक
पुतली कांपना
सांझ हो गई
घर को ताक
समय हुआ
चल झाड़ हाथ
1 टिप्पणी:
प्रवीण पाण्डेय
ने कहा…
सबको हाथ झाड़ के जाना है।
7 जनवरी 2011 को 9:23 pm बजे
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1 टिप्पणी:
सबको हाथ झाड़ के जाना है।
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