मानव जीवन चलता है
यात्रा धर्म में पलता है
बात जो समक्ष आती है
यात्रा नये वस्त्र पाती है
जीवन जिए वस्त्र लिए
नये, पर पुराने सभी हुए
मित्रो अंतिम यात्रा के लिए
एक चाह में राजीव जिए
ढकने तन को ढूंड पुराना
नाप तन को तुम ले आना
यदि चढ़े कोई गर्म नया
उसे ठिठुरते को दे आना
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर भाव।
एक टिप्पणी भेजें