कलम कवि की
कलम कवि की
रविवार, 12 जनवरी 2014
ताबूत में ओढ़े कफ़न
ताबूत से पहले बुत
लिये चला चलन
बुत खड़ा निहारे
बुत बुत का काटे कफन
बुत तराश धरा से
लेकर उसके संचयन
यूँ चलावे हाथ
ज्यूँ बुत बोले वचन
प्राण संग बुत बुत रहे
जगा ताबूत में ओढ़े कफ़न
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