रकीब से चाहत है इस हद तक
वो आया उनकी याद दे गया
उसको गले से लगाया हमने
तन मन उनकी महक दे गया
उनकी मंशा विरूध दिल में बसाया
ना चाहते हुए भी सबसे सब कह गया
अब डरतें हैं जहान से कुच करने में
दफनाना, देखना दिल संग ना रह गया
वीरान थे हम आशियाँ खाली पड़ा था
देखा जो उसे गुलशन ही महक गया
हमारा मकान तो एक मकान ही रहा
भले दूजे के मकान को घर कह गया
वो आया उनकी याद दे गया
उसको गले से लगाया हमने
तन मन उनकी महक दे गया
उनकी मंशा विरूध दिल में बसाया
ना चाहते हुए भी सबसे सब कह गया
अब डरतें हैं जहान से कुच करने में
दफनाना, देखना दिल संग ना रह गया
वीरान थे हम आशियाँ खाली पड़ा था
देखा जो उसे गुलशन ही महक गया
हमारा मकान तो एक मकान ही रहा
भले दूजे के मकान को घर कह गया
1 टिप्पणी:
बहुत खूब रचना..
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