कलम कवि की
कलम कवि की
शनिवार, 11 फ़रवरी 2012
?
उदास हूँ तुमेह ही क्यूँ दिखा,
चेहरा खिला रहता है ज़माना कहता है
छिपा अश्क तुमेह ही क्यूँ दिखा
रोतों को हँसाता हूँ ज़माना कहता है
2 टिप्पणियां:
Sunil Kumar
ने कहा…
achha ha
11 फ़रवरी 2012 को 11:51 am बजे
प्रवीण पाण्डेय
ने कहा…
...जमाने पे न जा..
11 फ़रवरी 2012 को 3:33 pm बजे
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2 टिप्पणियां:
achha ha
...जमाने पे न जा..
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