गुरुवार, 24 मार्च 2011

प्रेम

प्रेम प्रेम तो सब कहें, प्रेमार्थ न जाने कोई|
जो प्रेमार्थ जान लो, प्रेम सा दुःख न कोई || 

दुःख का अंत प्रेम है
प्रेम का आदि दुःख|
जो प्रेमार्थ का ज्ञान है
प्रेम में छिपे सब सुख|| 
 
 
 

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रेम ही जीवन के सुखों का आधार है।

हरीश सिंह ने कहा…

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