कलम कवि की
कलम कवि की
गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011
बदलाव
१.
सुबह की किरणे
नवजीवन लायें
ज्यूँ फैलाएँ डैने
त्यूँ फैलाएँ अग्न
ढलन को पहुँचे
सुध लाये थकन
२.
हर सुबह
नई जागृती
दूजा पहर
सूर्य कीर्ति
बुझती किरणे
छुपती धरती
1 टिप्पणी:
प्रवीण पाण्डेय
ने कहा…
जगाती, ताजगी भरी कविता।
25 फ़रवरी 2011 को 8:18 am बजे
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1 टिप्पणी:
जगाती, ताजगी भरी कविता।
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