हंसी संजोये होठों पर वह
रखती थी आँखों मे पानी
मन मे सपने लिए अनोखे
पाले थी वह पेट
मे रानी
पुरुष ने पुरुषार्थ दिखाया
कहकर दबदबा बनाया
जने जो तेरी कोख़ जनियो
दुनिया जाने वंश बढ़ाया
कुछ न बोली कुछ न बोली
मन रोता पर गर्दन
हामी
बादल ने ज्यूँ ली अँगड़ाई
समय बीतता बद्री छाई
लाडो पर ज्यूँ धरी हथेली
पुरुष क्यों जन्मा हमने
बोली
सुखी आँखें करें थी बातें
माँ बेटी थी दर्द की हाणी
लाडो मै शर्मिंदा क्षमा कर
अपनी जननी माई को
दोष यदि कोई
मेरा बच्ची
क्षमा पुरुष
की जाई को
तभी हुई एक अजब कहानी
पेट में बोले थी वो रानी
माँ थोड़ी तू हिम्मत रख
मै आती तू झपक पलक
फिर तू देखेगी ये बेटी
प्रेम प्यार से हरेगी हेठी
माँ देख मेरे भाई को
उसकी सूनी कलाई को
भाई भी मुझको है चाहता
छुप छुप आँख में पानी लाता
तू कहती बापू न चाहे
बाप बिना कोई कैसे आये
दादी बुआ तुझे जो कहती
अंदर मै सब सुनती
रहती
तू उनको क्यूँ न समझाती
उनकी भी है नार्री जाती
जो वो दुनिया में न होती
वंश के बीज किस में बोती
दादा आया दादी लाया
बापू आया तुझे था लाया
काहे ये समझे ना कोई
हमने ही ये वंश बढाया
क्यूँ सीता चली थी अग्नि
पर
क्यूँ द्रोपती पर पांचो का
साया
गांधारी ने क्यूँ पट्टी
बाँधी
क्यूँ सती का धर्म था छाया
हर प्रश्न का उत्तर तू पाए
पुरुष नहीं नारी से आए
समय हुआ समय वो आया
नारी नारी भाए न साया
चल खड़ी होजा रे अब तू
बजा बिगुल उद्घोषणा कर तू
धरती करे बस वो ही पैदा
जिसका बीज उसमे जो बोवे
गर नारी अब बाँझ हो गई
समस्त धरा धराशाही होवे
रे समाज तू अब सुधर जा
आइना देख देख तू अपने
मुख से मुख पर थुँकवायेगा
दो जन एक जैसे जब मिलकर
कुछ न पैदा कर पावेगा
भूमि न होएगी तुम संग
फसल तू कहाँ लगाएगा
कामी भूल रिश्ते सब अपने
नज़र नज़र में गिर जायेंगे
पछ्तावे से होगा नहीं कुछ
जब रुंड मुंड लह्लाहायेगे
जब रुंड मुंड लह्लाहायेगे
1 टिप्पणी:
आदरणीय राजीव जी -- कितनी सुंदर रचना है आपकी और उतनी ही विचारणीय भी | अजन्मी बेटी का माँ से प्रबुद्ध संवाद किसके मन को ना छू जाएगा ? बहुत सुंदर और भाव स्पर्शी रचना के लिए आपकी सराहना भी करती हूँ और आभार भी -जो एक पुरुष होते हुए भी आपने इतनी सुंदर रचना लिखी | पुरुष प्रधान समाज को इन प्रश्नों के उत्तर देने ही होंगे | सादर - सस्नेह शुभकामनायें |
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