रविवार, 7 अप्रैल 2019

नफ़रत


नफ़रत की गंध इस तरह फैल गई
फूलों की गंध भी उसमे नहीं मिल पाई
ड़ेंगू मलेरिया या हो चिकनगुनिया
केंसर पार्किनसन या हो एड्स
इनसे तो डॉक्टर मुक्त करा देंग
पर आपसी स्पर्धा में मुक्त कर नफरत। बढ़ा देंगे
   शत शत नमन उस भाई को
जिसने नफ़रत का  बीज बनाया
नष्ट नहीं हो इसका कोई कोना
ऐसा सुरक्षा कवच चारों ओर लिपटाय
पर है मानव नफरत के चाहे जितने बीज बनाता
पर इस नफरत रूपी ज़हर से रिश्तों को बचाता
पूत्र पिता से पुत्री अपनी जननी से एक सुर ऊपर उठाती है
उस समय माँत पिता की दृष्टि झुक जाती हैं
जब भाई भाई बिन।मेहनत पिता के खून पसीने को तोलते
औऱ बूत बना पिता आंखों में मोतियों की झड़ी लगते हैं
माँ अपने पति के सिर को सहलाते हुए कुछ नहीं कह पाती
पर अपनी आंखों को दब दबाते हुए वो सब कुछ कह दिया
देख मानव नफ़रत का बीज बोया पर प्रेम ने उसे बिना बोले धोया

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

अंधी गली

अपनी निगाहों मे छुपा कर आँसुओ का ताला लगाया था
सोचा था अब तुम्हें कोई देख नहीं पायेगा और बनाया था
भुल थी मेरी जो तुम्हें अपना समझा और सारे राज बताये
पर तुमने मुझे आईना दिखा मुझे मेरी औकात दिखा दी
प्रेम इश्क़ सिर्फ कहने कोै तुमने मुझे उसकी कीमत बताई
आज हमं खाली हो गए तो तुमने मुझे अंधी गली दिखा दी

नया लायें

वो इंतज़ार મેં हैं हम कुछ लिखे
हम इन्तज़ार में हैं कुछ नया दिखे
पुराना समेट दिया चलो नया लायें
ना करेंआवरण नया और भीतर पुराना पाएँ

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

वायदे तो कर दिये कैसे नीभायेगे

कुर्सी की चाह ईस कदर बिलबीलाई थी
आपने उसके बदले कुछ वायदे कर डाले थे
हर शय वायदो को अपने से जोड़ मसीहा समझ
खातादार बन खाता पुस्तिका पकड़ बाट जोहती है
15 लाख के ईनृतजार मे सही भी सही से करपायेगे
आप बतायै हमसे वायदे तो कर दिये कैसे नीभायेगे
सवच्छ भारत की बात आपने गुजाई थो
पूरी कैसे हो बताये कचरा सवच़छता के समीप है
अच्छे मित्र समान दोनो फुसफूसाने मे लगे है
कही सवच्छता के नाम हम पर भृषटाचारौ तमगा लगेगा
कृपया बतायै कैसे पुरा करेगे या करवायैगे
आप बतायै हमे वायदे तो कर दिये कैसे नीभायेगे
सघने तो आपने नयनो मे ईस कदर भरे थे
जैसे मुटृठी मे हीरे भर तो लिये कहने को
पर मुटृठी बाहर कैसे निकाले तरकीब बताये
हमने आप के कहने पर कमल उगाये थे
अब एक बार फिर फसल ए नेता आप चुनवायेगे
ये कायदा तो आपने कहा था करेगे सो पायेगे
आप बतायै हमे वायदे तो कर दिये कैसे नीभायेगे

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

कसक रह गई


कुछ भी तो ना चाहा पर कसक एक रह गई बाकी
मुहाफ़िज़ समझा जिसे विरोधियों का सरदार निकला



phoolJHADI


कुछ भी तो ना चाहा पर कसक एक रह गई बाकी
मुहाफ़िज़ समझा जिसे विरोधियों का सरदार निकला


दोस्ती जब किसी से की जाए
उसकी सखियों पहले गिनी जाएँ



क्या क्या सुनायें दास्ताँ,
इस जहान की दोस्तों
चाहने वालों की कमी नही 
अपनाने वाला एक भी नही


.मेरे अंगना तूफ़ान आया और सब उजड़ गया
बचा वही जो मुसीबत में झुकना सीख आया


कौन कौन कितने थे वो यह तो हमको याद नहीं 
आज खो कर पाया हमको कोई उनके बाद नहीं




भयानक दिखता है


अब तो हर दिन भयानक दिखता है
नए नाटय का कथानक दिखता है
कथा पुरानी पात्र क्यों नया रुप धर्ता
नई वार्ता नया जोश अंग अंग भरता
कुछ अच्छा भी होगा नया नया सा
सोच मन सोच, सोचने में क्या लगता
पता नहीं कौन सी सोच कब बिक जाए
क्या पुराना भी नया अचानक दिखता है